Thar Desert

Rajiv Guptaजलवायु परिवर्तन तथा मानवीय गतिविधियों समेत अनेक पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने से शुष्क, अर्द्ध-शुष्क और निर्जल अर्द्ध-नम इलाकों की जमीन मरुस्थल या रेगिस्तान में बदल जाती है| इससे जमीन की उत्पादन क्षमता में कमी और ह्रास होता हैं।पर्यावरण के दृष्टिकोण से व उपजाऊ भूमि के क्षेत्रफल कम होने से मानव को रेगिस्तान व सूखा ग्रस्त भूमि से नुकसान होता है । यह हम सभी जानते हैं इस रेगिस्तान और सूखाग्रस्त भूमि को रोकने के लिए आज 17 जून को जागरूकता दिवस के रूप में मनाया जाता है| इस दिवस का उद्देश्य अंतराष्ट्रीय सहयोग से बंजर और सूखे के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए जन जागरूकता को बढ़ावा देना है|

रेगिस्तान या मरुस्थल किसे कहते है?
रेगिस्तान या मरुस्थल एक बंजर, शुष्क क्षेत्र है, जहाँ वनस्पति नहीं के बराबर होती है, यहाँ केवल वही पौधे पनप सकते हैं, जिनमें जल संचय करने की अथवा धरती के बहुत नीचे से जल प्राप्त करने की अदभुत क्षमता हो। यहाँ पर उगने वाले पौधे ज़मीन के काफ़ी नीचे तक अपनी जड़ों को विकसित कर लेते हैं, जिस कारण नीचे की नमी को ये आसानी से ग्रहण कर लेते हैं। मिट्टी की पतली चादर, जो वायु के तीव्र वेग से पलटती रहती है और जिसमें कि खाद-मिट्टी का अभाव होता है, वह उपजाऊ नहीं होती। इन क्षेत्रों में वाष्पीकरण की क्रिया से वाष्पित जल, वर्षा से प्राप्त कुल जल से अधिक हो जाता है, तथा यहाँ वर्षा बहुत कम और कहीं-कहीं ही हो पाती है। अंटार्कटिका क्षेत्र को छोड़कर अन्य स्थानों पर सूखे की अवधि एक साल या इससे भी अधिक भी हो सकती है। इस क्षेत्र में बेहद शुष्क व गर्म स्थिति किसी भी पैदावार के लिए उपयुक्त नहीं होती है।

मरुस्थल के प्रकार
वास्तविक मरुस्थल-इसमें बालू की प्रचुरता पाई जाती है।
पथरीले मरुस्थल-इसमें कंकड़-पत्थर से युक्त भूमि पाई जाती है। इन्हें अल्जीरिया में रेग तथा लीबिया में सेरिर के नाम से जाना जाता है।Thar Desert
चट्टानी मरुस्थल-इसमें चट्टानी भूमि का हिस्सा अधिकाधिक होता है। इन्हें सहारा क्षेत्र में हमादा कहा जाता है।

विश्व में जितने भी प्रकार के रेगिस्तान हैं, उतने ही प्रकार की उनकी वर्गीकरण पद्धतियाँ प्रचलित हैं। रेगिस्तान ठंडे व गर्म दोनों प्रकार के होते हैं। धरती पर तरह-तरह के गर्म व ठंडे रेगिस्तान हैं। जिस क्षेत्र का औसत तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है, उन्हें ‘गर्म रेगिस्तान’ कहा जाता है। प्रायः अध्रुवीय क्षेत्रों के रेगिस्तान गर्म होते हैं। अध्रुवीय रेगिस्तानों में पानी बहुत ही कम होता है, इसलिए ये क्षेत्र गर्म होते हैं। प्रायः शुष्क और अत्यधिक शुष्क भूमि वास्तव में रेगिस्तान को और अर्धशुष्क भूमि घास के मैदानों को दर्शाती हैं। जिन क्षेत्रों में शीत ऋतु का औसत तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से कम होता है वे इलाके ‘ठंडे रेगिस्तान’ या ‘शीत रेगिस्तान कहलाते’ हैं।

ध्रुवीय क्षेत्र के रेगिस्तान ठंडे होते हैं तथा वर्ष भर बर्फ से ढके रहते हैं। यहाँ वर्षा नगण्य होती है तथा धरती की सतह पर सदैव बर्फ की चादर सी बिछी रहती है। जिन क्षेत्रों में जमाव बिंदु एक विशेष मौसम में ही होता है, उन ठंडे रेगिस्तानों को ‘टुंड्रा’ कहते हैं। जहाँ पूरे वर्ष तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से कम रहता है, ऐसे स्थान सदैव बर्फ आच्छादित रहते हैं। ध्रुवीय प्रदेश के अलावा अन्य क्षेत्रों में जल की उपस्थिति बहुत कम होने के कारण रेगिस्तान गर्म होते हैं।

रेगिस्तान का निर्धारण 
वर्षा की स्थिति:- प्रायः रेगिस्तान का निर्धारण वार्षिक वर्षा की मात्रा, वर्षा के कुल दिनों, तापमान, नमी आदि कारकों के द्वारा किया जाता है। इस संबंध में सन 1953 में यूनेस्को के लिए पेवरिल मीग्स द्वारा किया गया वर्गीकरण लगभग सर्वमान्य है। उन्होंने वार्षिक वर्षा के आधार पर विश्व के रेगिस्तानों को 3 विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया है।
1. अति शुष्क भूमि – जहाँ लगातार 12 महीनों तक वर्षा नहीं होती तथा कुल वार्षिक वर्षा का औसत 25 मि.मी. से कम ही रहता है।
2. शुष्क भूमि – जहाँ पर वर्षा 250 मि.मी. प्रति वर्ष से कम हो।
3. अर्धशुष्क भूमि – जहाँ पर औसत वार्षिक वर्षा 250 से 500 मि.मी. से कम होती है।

Thar-Desert

इन सब बातों के आधार पर भी केवल वर्षा की कमी ही किसी क्षेत्र को रेगिस्तान के रूप में निर्धारित नहीं कर सकती। उदाहरण के लिए फोनिक्स व एरीजोना क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा का स्तर 250 मि.मी. से कम होता है, लेकिन उन क्षेत्रों को रेगिस्तान की मान्यता प्राप्त है। दूसरी ओर अलास्का ब्रोक रेंज के उत्तरी ढलान, में भी वार्षिक वर्षा का स्तर भी 250 मि.मी. से कम होता है, परंतु इन क्षेत्रों को रेगिस्तान नहीं माना जाता है।

विश्व रेगिस्तान व सूखाग्रस्त रोकथाम दिवस का इतिहास
वर्ष 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने प्रस्ताव ए/आऱईएस/49/115 में बंजर औऱ सूखे से जुड़े मुद्दे पर जन जागरुकता को बढ़ावा देने और सूखे और/या मरुस्थलीकरण का दंश झेल रहे देशों खासकर अफ्रीका में संयुक्त राष्ट्र के मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन के कार्यान्वयन के लिए मरुस्थलीकरण रोकथाम का प्रस्ताव रखा गया | जिसका अनुमोदन दिसम्बर 1996 में किया गया। वहीं 14 अक्टूबर 1994 को भारत ने मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (यूएनसीसीडी) पर हस्ताक्षर किये।पहला विश्व मरुस्थलीकरण रोकथाम दिवस (डब्ल्यूडीसीडी) वर्ष 1995 से मनाया जा रहा है| UNCCD एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो पर्यावरण एवं विकास के मुद्दों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी है।

संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम कन्‍वेंशन
संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत तीन रियो समझौतों (Rio Conventions) में से एक है। अन्य दो समझौते निम्नलिखित हैं-
1. जैव विविधता पर समझौता।
2. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क समझौता।

विश्व मरुस्थलीकरण कितना है?
वर्तमान में समस्त विश्व के कुल क्षेत्रफल का 20 प्रतिशत मरुस्थलीय भूमि के रूप में है| जबकि सूखाग्रस्त भूमि कुल वैश्विक क्षेत्रफल का एक तिहाई है|

मरुस्थलीकरण भारत की प्रमुख समस्या
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मरुस्थलीकरण भारत की प्रमुख समस्या बनती जा रही है| भारत का 29.32 फीसदी क्षेत्र मरुस्थलीकरण से प्रभावित है| इसमें से 82 प्रतिशत हिस्सा केवल आठ राज्यों राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मू एवं कश्मीर, कर्नाटक, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में हैं| थार मरुस्थल भारत के उत्तर-पश्चिम में तथा पाकिस्तान के दक्षिण-पूर्व में स्थितहै। भारत थार मरुस्थल का अधिकांश भाग राजस्थान में स्थित है परन्तु कुछ भाग हरियाणा, पंजाब,गुजरात और पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रांतों में भी फैला है। इस क्षेत्र में प्रति वर्ष 150 mm से भी कम वर्षा होती है।

मरुस्थलीकरण से निवारण के उपाय
Desertमानव जो चाहे वह कर सकता हैं।आज तमाम पद्धतियों के माध्यम से वह बाँझ जैसे कलंक को आज दूर कर रहा है| इसी प्रकार अगर मानव अपने कृतियों से रेगिस्तान जमीन को उपजाऊ भी बना सकता है और सूखाग्रस्त इलाकों में पानी का भी संचार करा सकता है। उसका वनीकरण का प्रोत्साहन इस समस्या से निपटने में सहायक हो सकता है, कृषि में रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर जैविक उर्वरकों का प्रयोग सूखे को कम करता है|फसल चक्र को प्रभावी रूप से अपनाना और सिंचाई के नवीन और वैज्ञानिक तरीकों को अपनाना जैसे बूंद-बूंद सिंचाई, स्प्रिंकलर सिंचाई आदि.पेड़ ,जल आदि का संचय करना होगा | यह सब उसकी इच्छा शक्ति और उसकी बुरी आदतों को या कहिए
प्राकृतिक का अंधाधुंध दोहन उसे बंद करना पड़ेगा तभी हम इतनी बड़ी रेगिस्तान की भूमि रेगिस्तान व सूखाग्रस्त भूमि को उपजाऊ करेंगे बल्कि उपजाऊ बनाकर सभी जीव जंतुओं को लाभ पहुँचाऐगे |

राजीव गुप्ता जनस्नेही कलम से
लोक स्वर आगरा
फोन नंबर 98370 97850
Email rajeevsir.taj@gmail.com


Note by the editor: The views, thoughts, and opinions expressed in this article belong solely to the author, and do not necessarily reflect the views of Agra24.in.

Vishal Sharma
Vishal Sharma

Vishal Sharma is an experienced Indian journalist, cyber security consultant, social activist, and poet writing under the pen name Surur Akbarabadi. With over two decades in journalism, he has worked across print, digital, and TV media, including notable roles at The Indian Express, The Pioneer, Indo-American Times, and Business Standard. He is currently the editor of Agra24.in, a bilingual news portal focused on Agra, which he co-founded to provide in-depth analysis and balanced reporting. Based in Agra and Lucknow, Vishal balances his professional commitments with family life. Academically, he has studied Life Sciences, Law, and Business Management, and has pursued studies in journalism and mass communication. His journalism covers current affairs, business, and social issues, with a focus on factual reporting and avoiding controversial topics that could harm social harmony. As a poet inspired by Urdu legends like Ghalib and Nazir Akbarabadi, Vishal’s work combines personal insight with societal critique. He actively promotes communal harmony through his role as Vice-Chairman of Hindustani Biradari, an organization founded to emphasize unity beyond religion and caste. He is also Secretary of the Agra Tourist Welfare Chamber and was also a member of Agra’s Heritage and History Conservation Committee, working to preserve the city’s cultural heritage. Professionally, Vishal brings his cyber security expertise to his media work, enhancing the technical and editorial quality of his news platforms. His interests include photography and travel, particularly exploring India’s diverse landscapes and cultural heritage sites like Rajasthan, especially Sariska. His contributions reflect a steady commitment to journalism, cultural preservation, and social cohesion without excessive embellishment.

By Vishal Sharma

Vishal Sharma is an experienced Indian journalist, cyber security consultant, social activist, and poet writing under the pen name Surur Akbarabadi. With over two decades in journalism, he has worked across print, digital, and TV media, including notable roles at The Indian Express, The Pioneer, Indo-American Times, and Business Standard. He is currently the editor of Agra24.in, a bilingual news portal focused on Agra, which he co-founded to provide in-depth analysis and balanced reporting. Based in Agra and Lucknow, Vishal balances his professional commitments with family life. Academically, he has studied Life Sciences, Law, and Business Management, and has pursued studies in journalism and mass communication. His journalism covers current affairs, business, and social issues, with a focus on factual reporting and avoiding controversial topics that could harm social harmony. As a poet inspired by Urdu legends like Ghalib and Nazir Akbarabadi, Vishal’s work combines personal insight with societal critique. He actively promotes communal harmony through his role as Vice-Chairman of Hindustani Biradari, an organization founded to emphasize unity beyond religion and caste. He is also Secretary of the Agra Tourist Welfare Chamber and was also a member of Agra’s Heritage and History Conservation Committee, working to preserve the city’s cultural heritage. Professionally, Vishal brings his cyber security expertise to his media work, enhancing the technical and editorial quality of his news platforms. His interests include photography and travel, particularly exploring India’s diverse landscapes and cultural heritage sites like Rajasthan, especially Sariska. His contributions reflect a steady commitment to journalism, cultural preservation, and social cohesion without excessive embellishment.