बटेश्वर मेले के अवसर पर इस वर्ष जल संरक्षण को लेकर महत्वपूर्ण आयोजन किया जाएगा। सिविल सोसायटी ऑफ आगरा ने जिला पंचायत अध्यक्ष से आग्रह किया है कि मेले में उटंगन नदी पर केन्द्रित ‘नदी जल संरक्षण सम्मेलन’ रखा जाए। यह सम्मेलन स्थानीय लोगों में जल संरक्षण, नदी की सार्थक उपयोगिता और लगातार गिरते भूजल स्तर के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से आयोजित किया जाएगा।
उटंगन नदी, जिसे गंभीर नदी भी कहा जाता है, भारत के राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्यों में बहने वाली एक प्रमुख नदी है। यह नदी राजस्थान के करौली जिले में अरावली पहाड़ियों से जन्म लेती है। नदी का कुल प्रवास लगभग 288 किलोमीटर है और यह अंततः यमुना नदी में मिल जाती है। इसके प्रवाह का कुछ हिस्सा धौलपुर जिले में राजस्थान-उत्तर प्रदेश की सीमा भी निर्धारित करता है।
उटंगन नदी केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को जल प्रदान करती है और इस क्षेत्र की जैव विविधता का अभिन्न हिस्सा है। राजस्थान के बाद यह उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में प्रवेश करती है, जहां इसका लगभग 88 किलोमीटर क्षेत्र है। नदी का यह जलसंरचनात्मक महत्व कई स्थानीय गांवों और कृषि के लिए अनिवार्य है।
रेहावली (फतेहाबाद तहसील) और रीठे (बाह तहसील) गांवों के बीच उटंगन नदी पर बनाए जाने वाले प्रस्तावित बांध से मानसून कालीन जल को रोका जा सकेगा। इस जलाशय से करोड़ों घन मीटर पानी इकट्ठा होगा, जिसका उपयोग बटेश्वर मंदिर के घाटों में शुद्ध जल उपलब्ध कराने के साथ-साथ आसपास की सिंचाई आवश्यकताओं के लिए भी किया जाएगा।
बांध बनने से शमसाबाद, फतेहाबाद, पिनाहट और बाह के विकास खंडों में भूमिगत जलस्तर में सुधार संभव होगा। वर्तमान में यह क्षेत्र अति दोहित श्रेणी में आता है और कई गांवों में हैंडपंप सूख चुके हैं।
सिविल सोसायटी ऑफ आगरा के सेक्रेटरी अनिल शर्मा के अनुसार, जल संरक्षण सम्मेलन में उटंगन नदी के जल भंडारण, संरक्षण और सतत उपयोग के तरीकों पर चर्चा होगी। यह आयोजन विशेष रूप से कार्तिक पूर्णिमा, शिवरात्रि और सोमवार जैसे धार्मिक अवसरों पर बटेश्वर के घाटों में शुद्ध जल की बढ़ती मांग को देखते हुए किया जाएगा।
डॉ. मंजू भदौरिया, जिला पंचायत अध्यक्ष ने भी नदी के संरक्षण और जल डूब क्षेत्र के चिन्हांकन के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। उन्होंने मानसून कालीन जल प्रवाह के प्रभावी प्रबंधन के लिए संबंधित विभागों को निर्देश दिए हैं और रेहावली बांध के निर्माण हेतु मुख्यमंत्री से मुलाकात की योजना बनाई है।
हालांकि नदी का पिछले कुछ वर्षों में जल स्तर कम हो गया था, लेकिन मानसून के दौरान इसका जलस्तर फिर से बढ़ रहा है। नदी की बरसात के दौरान उफान से आसपास के गांवों में बाढ़ की आशंका भी बनी रहती है, जिससे सतर्कता जरूरी है। साथ ही सिविल सोसायटी द्वारा उटंगन नदी के संगम स्थल की ड्रोन मैपिंग के माध्यम से जलाशय बनाने के लिए उपयुक्त जगहों का सटीक मूल्यांकन किया जा चुका है।
इस सम्मेलन से स्थानीय प्रशासन, वैज्ञानिक तथा ग्रामीणवासी मिलकर उटंगन नदी के संरक्षण और जल संभरण के लिए हितकारी कदम उठा सकेंगे, जिससे क्षेत्र के जल संकट एवं पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अहम प्रगति संभव होगी।