अमरीका के अफ़ग़ानिस्तान से बाहर निकालने के साथ ही तेजी से पूरे देश में अपने पैर दोबारा पसार रहे अफ़गान कट्टरपंथी संगठन तालिबान (Taliban) ने अफगानिस्तान में भारत को विकास और बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं को जारी रखने की छूट देते हुए इन परियोजनाओं की तारीफ की है, लेकिन साथ ही चेताया है कि भारत को अफ़ग़ानिस्तान में किसी भी तरह का सैन्य हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए अन्यथा इसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे।
तालिबानी प्रवक्ता सुहैल शाहीन के अनुसार भारत को अफ़ग़ानिस्तान में किसी भी तरह का सैन्य हस्तक्षेप करने से पहले ऐसा करने वाले अन्य देशों का हश्र देख लेना चाहिए। शाहीन के अनुसार अगर भारत राष्ट्रीय परियोजनाओं के निर्माण में लगकर अफ़गान जनता की मदद करना चाहता है तो इसके लिए तालिबान (Taliban) हूकूमत शुक्रगुज़ार होगी, लेकिन भारत को अफ़ग़ानिस्तान में किसी भी प्रकार की सैन्य भूमिका निभाने की इजाजत नहीं दी जाएगी।
इस बीच अफ़ग़ान और तालिबानी सेनाओं के बीच लगातार बढ़ती हिंसा को देखते हुए भारत और अमरीका सहित कई देशों ने अपने राजनयिकों एवं कर्मचारियों को तालिबानी कब्जे वाले क्षेत्रों से बाहर निकाल लिया है। हालांकि तालिबान (Taliban) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को आश्वस्त किया गया है कि राजनयिकों को निशाना नहीं बनाया जाएगा।
शाहीन ने स्पष्ट किया कि भारत और अन्य देशों की चिंताओं के विपरीत तालिबान का स्पष्ट वायदा है कि दूतावासों एवं अन्य राजनयिक ठिकानों को निशाना नहीं बनाया जाएगा और न ही राजनयिकों व दूतावास कर्मचारियों को। उन्होंने कहा कि भारत की इस संबंध में चिंता गैरजरूरी है लेकिन अगर यही भारत का फैसला है तो यह भारत पर ही छोड़ना ठीक है। शाहीन ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में रह रहे हिन्दू, सिख और अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की जाएगी और उनके रीति-रिवाजों में तालिबान (Taliban) हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
तालिबान (Taliban) को अमरीकी एवं मित्र देशों की सेनाओं ने वर्ष 2001 में अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता से बेदखल कर दिया था, लेकिन उन्हें खत्म नहीं किया जा सका। नतीजतन, अमरीकी सेनाओं के अफ़ग़ानिस्तान से हटते ही तालिबान का लगभग आधे अफ़ग़ानिस्तान पर कब्जा हो चुका है और फिलहाल तालिबानी सेनाएं अफ़गान राजधानी काबुल को घेरने की स्थिति में आ गई हैं। काबुल पर तालिबानी कब्जा इस बात का संकेत होगा कि वर्ष 2001 से चले आ रहे अफ़ग़ानी लोकतंत्र को एक बार फ़िर तालिबान ने खत्म कर दिया और यह देश दोबारा इस्लामी कट्टरपंथी ताकतों के हाथों में जा चुका है।
तालिबान (Taliban) का भारत के पड़ोस में [पुनः उदय होना समूचे दक्षिण एशिया, खासकर कश्मीर की शांति के लिए बड़ा खतरा बनकर उभर सकता है और अगर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस ओर से आँखें मूँदे रहा तो तालिबान के हौसले और बुलंद होंगे जिसका खामियाजा भारत को ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान को भी उठाना पड़ सकता है, जिसकी कबायली जटिलताओं से भरी उत्तरी सीमा का एक बड़ा हिस्सा अफ़ग़ानिस्तान से मिलता है।